रक्षाबंधन नहीं - श्रावण पूर्णिमा : अंगुलिमाल धम्मदीक्षा व प्रथम बौद्ध संगीति शुभारंभ दिवस
रक्षाबंधन का दिन सावन (श्रावण) की पूर्णिमा, यह वही दिन है जिस दिन भगवान बुद्ध ने खूँखार डाकू अंगुलिमाल को धम्मदीक्षा दिया था। इसी दिन बौद्ध भिक्खुओं ने प्रथम बौद्ध संगीति का शुभारंभ किया था। भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण वैशाख की पूर्णिमा के बाद तीसरे महीने की पूर्णिमा को यानि श्रावण की पूर्णिमा को बौद्ध संगीति शुरू हुई। इसका ऐतिहासिक और लिखित महत्व होने के कारण, इसको मिटाने के उद्देश्य से आर्यों ने इसी दिन को यानि सावन पूर्णिमा के दिन ही यह रक्षाबंधन स्थापित कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि हम बौद्ध संगीति के प्रथम दिन को भी भूल गए और उसके महत्व को भी नहीं समझ सके।
आर्यों ने बड़ी ही होशियारी से एक तीर से दो लक्ष्य साधे :-
एक तो राजा बलि की हत्या करके उस पर पर्दा डाल दिया। दूसरे अपनी उसी जीत की खुशी को सावन पूर्णिमा के दिन स्थापित करके बौद्धों के एक ऐतिहासिक दिन और धम्म सभा आयोजन की परम्परा को भी मिटा दिया। और रक्षाबंधन का त्यौहार बना दिया।
किन्तु यह रक्षाबंधन भाई -बहन का त्यौहार कैसे बना यह समझ में नहीं आता। यद्यपि आर्यों ने मूलनिवासियों की संस्कृति को नष्ट कर इन्हें अपमानित करने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर अभियान चलाया। इसी के परिणाम स्वरूप हिंदू धर्म की अधिकतर पुराण और स्मृतियाँ सामने आई।
जो हिंदू धर्म की मान्यताओं पर रक्षाबंधन मनाने वाले लोग हैं उनको ज्ञात होना चाहिए कि जिस तथ्य के आधार पर रक्षाबंधन मनाया जाता है वह तथ्य आज के रक्षाबंधन से मेल नहीं खाता। रक्षा तो इन्द्राणी ने इन्द्र को बांधा था जोकि इन्द्र की पत्नी थी किन्तु अब बहन रक्षा बांधती है। आखिर बहन क्यों बांधती हैं ? क्या बहन को पत्नी का दर्जा देना उचित है ? यदि नहीं, तो क्या पत्नी को वर्ष में एक बार बहन बनाना उचित है ? नहीं। जबकि हिंदू तथ्य के अनुसार रक्षाबंधन तो पत्नी से ही बंधवाया जाना उचित है जैसा इन्द्र ने इन्द्राणी से बंधवाया था। किन्तु आज का हर हिंदू अपनी बहन से राखी बंधवाता है अर्थात वर्ष में एक दिन बहन को बड़ी खुशी से पत्नी का दर्जा दे दिया जाता है। बहन का इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है ? अब आप राखी किससे बंधवायेगे, फैसला आप पर है।
इस देश के मूलनिवासियों को ध्यान रखना होगा कि आपके मूल त्यौहार को तो त्यौहार बनने से पहले ही दफना दिया गया। प्रथम बौद्ध संगीति और अंगुलिमाल धम्मदीक्षा का वह दिन आपकी यादाश्त से मिटा दिया गया। इस देश के मूलनिवासी महाशक्तिशाली, दानवीर सम्राट बलि को छलपूर्वक परास्त करके मूलनिवासियों की
पराजय घोषित की गयी। यही रक्षाबंधन की सच्चाई है।
यह भाई -बहनों का त्यौहार नहीं है। यदि ऐसा होता तो मुसलमान बहनें, ईसाई बहनें एवं अन्य धर्मो की बहनें अपने -अपने भाइयों को राखियां बांधती होती, लेकिन ऐसा नहीं होता है। दूसरा इस त्यौहार का रहस्य यह है कि यह त्योहार आर्य और अनार्य संघर्ष एवं अनार्य दमन की यादगार है। यह त्यौहार स्त्री दासता का प्रतीक है। स्त्री को अबला कहकर इसकी रक्षा का भार पुरूष पर डाला गया है। अपनी रक्षा की राखी बांधकर स्त्री सदैव दूसरों की आश्रित और अपने को हीन समझती रहे यह भी इस त्यौहार का उद्देश्य है।
इसलिए रक्षाबंधन मूलनिवासी बौद्धों का त्यौहार नहीं हो सकता। मूलनिवासियों के धर्म और संस्कृति में महिलाओं का पुरूषों के बराबर सम्मान और अधिकार है। अपनी मान मर्यादा को बनाए रखना, अपनी बहन बेटियों की रक्षा -सुरक्षा और सहयता करना तो हमारा मानवीय और नैतिक कर्तव्य है जोकि बिना राखी बंधवाए
ही करना चाहिए और करते भी हैं। ब्राह्मण के द्वारा बांधे जाने वाले कलावे (धागे) को कभी नहीं बंधवाना चाहिए, क्योंकि यह हमारी गुलामी का प्रतीक है और कोई भी ढोंग पाखंड करने की जरूरत नहीं है। अपने इतिहास से सीख लें।
हर पूर्णिमा को बौद्ध उपासक / उपासिकाओं को शुभ वस्त्र पहनकर अपने बच्चों के साथ, परिवार के सभी लोगों के साथ अपने नजदीक के चैत्यों, बुद्ध विहारों, स्तूपों पर धम्म वन्दना के लिए जाना चाहिए। जिससे कि हमारे पूर्वजों के प्राचीन काल के कल्चर की शुरुआत दुबारा से हो सके, और जिसके घर के नजदीक कोई चैत्य, बुद्ध विहार, स्तूप मौजूद नहीं है, वो अपने घर को ही बुद्धमय बनाकर परिवार के साथ धम्म वन्दना करे।
किसी भी धम्म स्थल, सामूहिक भूमि, संभव हो सके तो व्यक्तिगत भूमि पर उचित स्थान पर प्रत्येक वर्ष सावन पूर्णिमा के दिन एक बोधिवृक्ष लगाएं। प्रथम बौद्ध संगीति को स्मरणीय बनाने के लिए धम्म संगोष्ठियों का आयोजन करें। अपने आचरण -सभ्यता -संस्कृति और धम्म के प्रति सचेत रहें।
अत्त दीपो भव भवतु सब्ब मंगलं
सम्राट अशोक धम्म विजय दिवस महोत्सव व बौद्ध धम्मदीक्षा
11 अक्टूबर 2016, सारनाथ, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
अंगुलिमाल धम्म दीक्षा व प्रथम बौद्ध संगीति शुभारंभ दिवस की
हार्दिक धम्मकामनाएँ, नमो बुद्धाय....
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