Saturday 16 May 2015

बेटियाँ

Why married daughters come to visit their parents Very nice must read:

"बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती है पीहर"

..बेटियाँ..
..पीहर आती है अपनी जड़ों को सींचने के लिए।
..तलाशने आती हैं भाई की खुशियाँ।
..वे ढूँढने आती हैं अपना सलोना बचपन।
..वे रखने आतीं हैं आँगन में स्नेह का दीपक।
..बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर॥

..बेटियाँ..
..ताबीज बांधने आती हैं दरवाजे पर कि नज़र से बचा रहे घर।
..वे नहाने आती हैं ममता की निर्झरनी में।
..देने आती हैं अपने भीतर से थोड़ा-थोड़ा सबको।
..बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर॥

..बेटियाँ..
..जब भी लौटती हैं ससुराल बहुत सारा वहीं छोड़ जाती हैं।
..तैरती रह जाती हैं घर भर की नम आँखों में उनकी प्यारी मुस्कान।
..जब भी आती हैं वे, लुटाने ही आती हैं अपना वैभव।
..बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर॥

बहुत "चंचल" बहुत "खुशनुमा " सी होती है "बेटियाँ"।
"नाज़ुक" सा "दिल" रखती है "मासूम" सी होती है "बेटियाँ"।
"बात" बात पर रोती है, "नादान" सी होती है "बेटियाँ"।
"रेहमत" से "भरपूर", "खुदा" की "नेमत" हैं "बेटियाँ"।
"घर" महक उठता है, जब "मुस्कराती" हैं "बेटियाँ"।
"अजीब" सी "तकलीफ" होती है, जब "दूसरे" घर जाती है "बेटियां"।
"घर" लगता है सूना-सूना "कितना" रुला के "जाती" है "बेटियां"।
"ख़ुशी" की "झलक", "बाबुल" की "लाड़ली" होती है "बेटियां"।
ये "हम" नहीं "कहते", यह तो "रब " कहता है.....
कि जब मैं बहुत खुश होता हूँ तो "जनम" लेती हैं "प्यारी सी बेटियां"॥

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