Saturday, 18 April 2015

विश्व का सामान्य ज्ञान


१. विश्व में भारत के अलावा 15 अगस्त को ही स्वतन्त्रता दिवस और किस देश में मनाया जाता है?
> कोरिया में
२. विश्व का ऐसा कौन सा देश है जो आज तक किसी का गुलाम नहीं हुआ?
> नेपाल
३. विश्व का सबसे पुराना समाचार पत्र कौन सा है?
> स्वीडन आफिशियल जनरल (1645 में प्रकाशित)
४. विश्व में कुल कितने देश हैं?
> 353
५. विश्व में ऐसा कौन सा देश है जहाँ के डाक टिकट पर उस देश का नाम नहीं होता?
> ग्रेट ब्रिटेन
६. विश्व की सबसे बड़ी मस्जिद कौन सी है?
> अलमल्विया (इराक)
७. विश्व का किस देश में कोई भी मंदिर-मस्जिद नहीं है?
> सउदी अरब
८. विश्व का सबसे बड़ा महासागर कौन सा है?
> प्रशांत महासागर
९. विश्व में सबसे बड़ी झील कौन सी है?
> केस्पो यनसी (रूस में)
१०. विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप कौन सा है?
> एशिया
११. विश्व की सबसे बड़ी दीवार कौन सी है?
> ग्रेट वाल ऑफ़ चायना (चीन की दीवार)
१२. विश्व में सबसे कठोर कानून वाला देश कौन सा है?
> सउदी अरब
१३. विश्व के किस देश में सफेद हाथी पाये जाते हैं?
> थाईलैंड
१४. विश्व में सबसे अधिक वेतन किसे मिलता है?
> अमेरिका के राष्टपति को
१५. विश्व में किस देश के राष्टपति का कार्यकाल एक साल का होता है?
> स्विट्जरलैंड
१६. विश्व की सबसे बड़ी नदी कौन सी है?
> नील नदी(6648 कि.मी.)
१७. विश्व का सबसे बड़ा रेगिस्तान कौन सा है?
> सहारा (84,00,000 वर्ग कि.मी., अफ्रीका में)
१८. विश्व की सबसे मँहगी वस्तु कौन सी है?
> यूरेनियम
१९. विश्व की सबसे प्राचीन भाषा कौन सी है?
> संस्कृत
२०. शाखाओं की संख्या की दृष्टि से विश्व का सबसे बड़ा बैंक कौन सा है?
> भारतीय स्टेट बैंक
२१. विश्व का ऐसा कौन सा देश है जिसने कभी किसी युद्ध में भाग नहीं लिया?
> स्विट्जरलैंड
२२. विश्व का का कौन सा ऐसा देश है जिसके एक भाग में शाम और एक भाग में दिन होता है?
> रूस
२३. विश्व का सबसे बड़ा एअरपोर्ट कौन सा है?
> टेक्सास का फोर्थ बर्थ (अमेरिका में)
२४. विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर कौन सा है?
> टोकियो
२५. विश्व की लम्बी नहर कौन सी है?
> स्वेज नहर (168 कि.मी. मिस्र में)
२६. विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य कौन सा है?
> महाभारत

कुछ रोचक महत्वपूर्ण जानकारियाँ

कुछ रोचक जानकारी क्या आपको पता है?
1. चीनी को जब चोट पर लगाया जाता है, दर्द तुरंत कम हो जाता है...
2. जरूरत से ज्यादा टेंशन आपके दिमाग को कुछ समय के लिए बंद कर सकती है...
3. 92% लोग सिर्फ हस देते हैं जब उन्हे सामने वाले की बात समझ नही आती...
4. बतक अपने आधे दिमाग को सुला सकती हैंजबकि उनका आधा दिमाग जगा रहता....
5. कोई भी अपने आप को सांस रोककर नही मार सकता...
6. स्टडी के अनुसार : होशियार लोग ज्यादा तर अपने आप से बातें करते हैं...
7. सुबह एक कप चाय की बजाए एक गिलास ठंडा पानी आपकी नींद जल्दी खोल देता है...
8. जुराब पहन कर सोने वाले लोग रात को बहुत कम बार जागते हैं या बिल्कुल नही जागते...
9. फेसबुक बनाने वाले मार्क जुकरबर्ग के पास कोई कालेज डिगरी नही है...
10. आपका दिमाग एक भी चेहरा अपने आप नही बना सकता आप जो भी चेहरे सपनों में देखते हैं वो जिदंगी में कभी ना कभी आपके द्वारा देखे जा चुके होते हैं...
11. अगर कोई आप की तरफ घूर रहा हो तो आप को खुद एहसास हो जाता है चाहे आप नींद में ही क्यों ना हो...
12. दुनिया में सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला पासवर्ड 123456 है.....
13. 85% लोग सोने से पहले वो सब सोचते हैं जो वो अपनी जिंदगी में करना चाहते हैं...
14. खुश रहने वालों की बजाए परेशान रहने वाले लोग ज्यादा पैसे खर्च करते हैं...
15. माँ अपने बच्चे के भार का तकरीबन सही अदांजा लगा सकती है जबकि बाप उसकी लम्बाई का...
16. पढना और सपने लेना हमारे दिमाग के अलग-अलग भागों की क्रिया है इसी लिए हम सपने में पढ नही पाते...
17. अगर एक चींटी का आकार एक आदमी के बराबर हो तो वो कार से दुगुनी तेजी से दौडेगी...
18. आप सोचना बंद नही कर सकते.....
19. चींटीयाँ कभी नही सोती...
20. हाथी ही एक एसा जानवर है जो कूद नही सकता...
21. जीभ हमारे शरीर की सबसे मजबूत मासपेशी है...
22. नील आर्मस्ट्रांग ने चन्द्रमा पर अपना बायां पाँव पहलेरखा था उस समय उसका दिल 1 मिनट में 156 बार धडक रहा था...
23. पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल के कारण पर्वतों का 15,000मीटर से ऊँचा होना संभव नही है...
23. शहद हजारों सालों तक खराब नही होता..
24. समुंद्री केकडे का दिल उसके सिर में होता है...
25. कुछ कीडे भोजन ना मिलने पर खुद को ही खा जाते है....
26. छींकते वक्त दिल की धडकन 1 मिली सेकेंड के लिए रूक जाती है...
27. लगातार 11 दिन से अधिक जागना असंभव है...
28. हमारे शरीर में इतना लोहा होता है कि उससे 1 इंच लंबी कील बनाई जा सकती है.....
29. बिल गेट्स 1 सेकेंड में करीब 12,000 रूपए कमाते हैं...
30. आप को कभी भी ये याद नही रहेगा कि आपका सपना कहां से शुरू हुआ था...
31. हर सेकेंड 100 बार आसमानी बिजली धरती पर गिरती है...
32. कंगारू उल्टा नही चल सकते...
33. इंटरनेट पर 80% ट्रैफिक सर्च इंजन से आती है...
34. एक गिलहरी की उमर, 9 साल होती है...
35. हमारे हर रोज 200 बाल झडते हैं...
36. हमारा बांया पांव हमारे दांये पांव से बडा होता हैं...
37. गिलहरी का एक दांत  हमेशा बढता रहता है....
38. दुनिया के 100 सबसे अमीर आदमी एक साल में इतना कमा लेते हैं जिससे दुनिया की गरीबी 4 बार खत्म की जा सकती है...
39. एक शुतुरमुर्ग की आँखे उसके दिमाग से बडी होती है...
40. चमगादड गुफा से निकलकर हमेशा बांई तरफ मुडती है...
41. ऊँट के दूध की दही नही बन सकता...
42. एक काॅकरोच सिर कटने के बाद भी कई दिन तक जिवित रह सकता है...
43. कोका कोला का असली रंग हरा था...
44. लाइटर का अविष्कार माचिस से पहले हुआ था...
45. रूपए कागज से नहीं बल्कि कपास से बनते है...
46. स्त्रियों की कमीज के बटन बाईं तरफ जबकि पुरूषों की कमीजके बटन दाईं तरफ होते हैं...
47. मनुष्य के दिमाग में 80% पानी होता है.
48. मनुष्य का खून 21 दिन तक स्टोर किया जा सकता है...
49. फिंगर प्रिंट की तरह मनुष्य की जीभ के निशान भी अलग-अलग होते हैं...

Tuesday, 14 April 2015

वर्ण व्यवस्था एवं जातिप्रथा की विकृति

वर्ण व्यवस्था एवं जातिप्रथा की विकृति - परिणामतः जातिवाद-छुआछूत जो अब बन गया एक अभिशाप

वर्ण व्यवस्था हिन्दू धर्म में प्राचीन काल से चले आ रहे सामाजिक गठन का अंग है, जिसमें विभिन्न समुदायों के लोगों का काम निर्धारित होता था । इन लोगों की संतानों के कार्य भी इन्हीं पर निर्भर करते थे तथा विभिन्न प्रकार के कार्यों के अनुसार बने ऐसे समुदायों को जाति या वर्ण कहा जाता था । प्राचीन भारतीय समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र वर्णों में विभाजित था।

ब्राह्मणों का कार्य शास्त्र अध्ययन, वेदपाठ तथा यज्ञ कराना होता था जबकि क्षत्रिय युद्ध तथा राज्य के कार्यों के उत्तरदायी थे।

वैश्यों का काम व्यापार तथा शूद्रों का काम सेवा प्रदान करना होता था। प्राचीन काल में यह सब संतुलित था तथा सामाजिक संगठन की दक्षता बढ़ानो के काम आता था। पर कालान्तर में ऊँच-नीच के भेदभाव तथा आर्थिक स्थिति बदलने के कारण इससे विभिन्न वर्णों के बीच दूरिया बढ़ीं। आज आरक्षण के कारण विभिन्न वर्णों के बीच अलग सा रिश्ता बनता जा रहा है । कहा जाता है कि हिटलर भारतीय वर्ण व्यवस्था से बहुत प्रभावित हुआ था । भारतीय उपमहाद्वीप के कई अन्य धर्म तथा सम्प्रदाय भी इसका पालन आंशिक या पूर्ण रूप से करते हैं । इनमें सिक्ख, इस्लाम तथा इसाई धर्म का नाम उल्लेखनीय है।

शरीर के सभी अंगों का अपना अपना महत्त्व व कार्य है। धार्मिक दृष्टि से कहा जाता है ब्रम्हा के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, जांघ से वैश्य और पैर से शुद्र। ब्राह्मण बुद्धि, क्षत्रिय शौर्य, पराक्रम वैश्य व्यवसाय और शुद्र सेवा भाव से जाना जाता है। चारो एक दूसरे के पूरक, एक दूसरे पर निर्भरता के द्योतक हैं। चारो गुण स्वाभाव से हीं सम्पूर्णता को हम प्राप्त करते हैं। गुण प्रधानता स्वाभाव के कारण इन वर्णों में विभाजन हुआ जो कार्य और व्यक्तिगत जीवन की निरंतरता के परिणति स्वरुप वंशानुगत उसकी परिणति जाति व्यवस्था में हो गई।

इतिहासकारों के अनुसार भारत वर्ष में प्राचीन हिंदू वर्ण व्यचस्था में लोगों को उनके द्वारा किये जाने वाले कार्य के अनुसार अलग-अलग वर्गों में रखा गया था।

पूजा-पाठ व अध्ययन-अध्यापन आदि कार्यो को करने वाले ब्राह्मण
शासन-व्यवस्था तथा
युद्ध कार्यों में संलग्न वर्ग क्षत्रिय
व्यापार आदि कार्यों को करने वाले वैश्य
श्रम कार्य व अन्य वर्गों के लिए सेवा करने वाले शूद्र कहे जाते थे।
वैदिक काल की प्राचीन व्यवस्था में जाति वंशानुगत नहीं होता था लेकिन गुप्तकाल के आते-आते अनुवांशिक आधार पर लोगों के वर्ण तय होने लगे। परस्पर श्रेष्ठता के भाव के चलते नई-नई जातियों की रचना होने लगी। यहाँ तक कि श्रेष्ठता की आपसी प्रतिद्वंदिता ने चारों वर्णों में भी कई उप वर्ग एवं जातियों की संख्या बढ़ाने का कार्य किया।

आजादी के बाद आरक्षण व्यवस्था की नई शुरुआत ने इसे और गहरा करने का कार्य किया है। राजनैतिक दलों ने तो सारी सीमाओं को पार करते हुए इसे काफी हद तक समाज में गहरा आघात पहुचाने लायक स्थिति में पहुँचाया है।

स्पस्ट है वास्तव में व्यवस्था किसी के जन्म के आधार पर नहीं बल्कि उसकॆ कर्मों के आधार पर तय की गई थी। परन्तु वर्त्तमान में इसकी वंशानुगत स्थिति को स्वीकार करने या कायम रहने के कारण समाज में असंतोष और विभेद का करक बन गई है।

जातिप्रथा हमारे समाज को सही तरह से चलने के लिए शुरू किया गया था न की उसे टुकडो में बाँट कर आपस में घृणा बाटने के लिए वर्ण प्रथा की शुरुआत समाज में कार्य को विभाजित कर उसे सही रूप से कार्यान्वित करने के लिए किया गया था न की उच-नीच जैसी कुप्रथा को प्रेरित कर समाज को ऐसा बना देना जहा कर्म, ज्ञान और कर्मठता कम और जाति को ज्यादा महत्ता दी जाती है।

हर एक आदमी की चारों जातियां होती हैं:
हर एक आदमी में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चारों खूबियाँ होती हैं। और समझने की आसानी के लिए हम एक आदमी को उसके ख़ास पेशे से जोड़कर देख सकते हैं। हालाँकि जातिप्रथा आज के दौर और सामाजिक ढांचे में अपनी प्रासंगिकता पहले से ज्यादा खो चुकी है। यजुर्वेद [32.16 ] में भगवान् से आदमी ने प्रार्थना की है की “हे ईश्वर, आप मेरी ब्राहमण और क्षत्रिय योग्यताएं बहुत ही अच्छी कर दो”. इससे यह साबित होता है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि शब्द असल में गुणों को प्रकट करते हैं न कि किसी आदमी को। तो इससे यह सिद्ध हुआ कि किसी व्यक्ति को शूद्र बता कर उससे घटिया व्यवहार करना वेद विरुद्ध है। आज की तारीख में किसी के पास ऐसा कोई तरीका नही है कि जिससे ये फैसला हो सके कि क्या पिछले कई हज़ारों सालों से तथाकथित ऊँची जाति के लोग ऊँचे ही रहे हैं और तथाकथित नीची जाति के लोग तथाकथित नीची जाति के ही रहे हैं।

जाति प्रथा ने हमें सिर्फ बर्बाद ही किया है:
जबसे हमारे भारत देश ने इस जात-पात को गंभीरता से लेना शुरू किया है तबसे हमारा देश दुनिया को राह दिखाने वाले दर्जे से निकलकर सिर्फ दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदार और भिखारी देश बनकर रह गया है और पश्चिमी दुनिया के देश इसीलिए इतनी तरक्की कर पाए क्योंकि उन्होंने अपनी बहुत सी कमियों के बावजूद सभी आदमियों को सिर्फ उनकी पैदाइश को पैमाना न बनाकर और पैदाइश की परवाह किये बगैर इंसान की इज्ज़त के मामले में बराबरी का हक़/दर्जा दिया।

जातिवाद से हिन्दू धर्म में गिरावट आई है:
हिन्दू धर्म के लिए इससे बड़े दुर्भाग्य की बात और क्या होगी?
“क्या हमारे पास ऐसी कोई भी चीज़ ऐसी है जिससे कि सदियों पहले अपने छोटे-छोटे दूध पीते बच्चों की जान बचाने के लिए, बहू-बेटियों की इज्ज़त बचाने के लिए, डर और मजबूरी से अलग हुए हमारे अपने ही भाइयों को इज्ज़त के साथ हिन्दू धर्म में आने के लिए मना सकें और उन्हें आपने दिल से लगा सकें।” “क्या हमारे पास उन्हें भला-बुरा कहने का कोई हक़ है जब हम अपने झूठे और बकवास तथकथित नकली किताबों को मानते हैं और जातिप्रथा और पुरुष-स्त्री में भेदभाव को सही मानते हैं ?”
बड़े दुःख की बात है कि लोग वर्ण व्यवस्था और जातिप्रथा के बीच मे कोई अंतर नहीं समझते.यही अज्ञानता समाज मे आपसी भेदभाव और ऊँच-नीच का विचार-भाव पैदा करने का कारण बना हुआ है। इसी विचार के कारण लोग एकजुट नहीं हो पा रहे हैं। वास्तव मे वर्ण व्यवस्था किसी के जन्म के आधार पर नहीं बल्कि उसके कर्मों के आधार पर तय की गई थी और तय की जानी चाहिये…..परंतु वर्तमान मे इसकी स्थिति अत्यंत दयनीय-सोचनीय और समाज मे असंतोष-विभेद का कारक बन गई है। विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों मे हालत ज्यादा खराब है। कुछ लोग अपने इस मूढ़ मान्यता को और भी सशक्त बनाने हेतु जातिप्रथा का आधार ऋग्वेद के पुरुषसूक्त के मंत्र 12 का उदाहरण देते हैं, जिसमे कहा गया है कि- "ब्राह्मणो अस्य मुखमासीद बाहू राजन्यः कतः उरु तदस्य यद् वैश्यः पदाभ्याम् शूद्रो अजायत्"। कुछ लोग इस मंत्र का अर्थ इस तरह से करते हैं कि- उस ईश्वर के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, जांघों से वैश्य व पैरों से शूद्र उत्पन्न हुये। लेकिन इस मंत्र से यह बात सिद्ध नहीं होती कि/अथवा इसमे ये कहीं भी नहीं कहा गया है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य उच्च वर्ग हैं एवं शरीर के नीचे होने वाले पैरों के समान शूद्र नीच समझे जायें। लोग यह समझने की कोशिश नहीं करते कि यदि शूद्र पैरों की तरह अपवित्र और अशुद्ध हैं तो, सभी खासकर हिंदु देवी-देवताओं, माँता-पिता, गुरुओं व बड़ों का चरण स्पर्श करके उनका आदर क्यों करते है?? उनका सिर स्पर्श क्यों नहीं करते? वास्तव मे वर्ण व्यवस्था लोगों के व्यवसाय यानि उनके कर्मों के आधार पर निर्धारित की गई थी/की जानी चाहिये, किसी परिवार मे जन्म लेने के आधार पर नहीं। गीता मे स्पष्ट कहा गया है कि- "चातुर्वण्यं मया स्रष्टं गुण कर्म विभागशः" (गीता अध्याय 4 श्लोक 13)। फिर भी लोग खुद को स्वर्ण बताकर शूद्रों को हेय समझते हैं। लोग इस बात पर गौर करें कि महर्षि बाल्मिकि न तो ब्राह्मण थे और न ही क्षत्रिय या वैश्य। सभी जानते हैं कि वह शूद्र थे। इस सत्य को जानते हुये भी श्रीराम ने सीता जी को जब किसी कारण से छोड़ दिया था तो सीता जी को कहीं और भेजने के वजाय बाल्मिकि जी के पास उनके आश्रम भेज दिया था। इसी तरह दुनियाँ व हिंदु जिस गीता को पवित्र एवं महान कृति मानते हैं वह गीता महाभारत का एक अंश है, जिसकी रचना व संकलन व्यास जी ने किया था….जो सवर्ण नहीं थे। इतिहास मे ऐसे हजारों उदाहरण विध्य्मान हैं जिनसे साबित होता है कि जाति-वर्ण से नहीं वरन् मेहनत, लगन से कोई भी इंसान प्रतिभाशाली हो सकता है एवं अपनी मेधा से कोई भी कुछ भी कर सकता है। इसलिये भाइयों इन सब मिथकों-रूढ़ियों से ऊपर उठ कर वैज्ञानिक एवं शास्वत चिंतन की ओर कदम बढ़ाईये और देश की उन्नति में अपना योगदान दीजिए। धन्यवाद!!!

Saturday, 11 April 2015

An Old Banyan Tree

बहुत दिनों पहले की बात है एक गाँव मे बरगद का बहुत पुराना पेड था। एक बार उस पेड़ की जड मे एक बेल उग आई और देखते ही देखते कुछ ही दिनो मे उसने पूरे बरगद को ढक लिया। एक दिन बेल ने बरगद की चुटकी ली कि बरगद दादा आपकी उम्र कितनी है? बरगद ने जवाब दिया बेटी मेरी उम्र 60 साल है। बेल ने फिर चुटकी ली कि बस 60 साल मे यहीं तक पहुँचे? मुझे देखो मै कल पैदा हुई और आज आप को पूरा ढक लिया। बरगद ने कोई जवाब नही दिया बस मुस्करा दिया। समय बीता सर्दी का मौसम आया और पाला पडा और बेल मुरझा गई और नीचे गिरने लगी तब बरगद बोला क्यों बेटी क्या हुआ? बेल बोली दादा मैं तो चली, बरगद ने कहा बस एक ही झटके मे, मुझे देखो मै पिछले 60 साल से ये सर्दी, गर्मी, बरसात, तूफान झेल रहा हूँ और अडिग खडा हूँ। क्योंकि मेरी जडें मजबूत हैं।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी अपने आप पर अभिमान नहीं करना चाहिए, हम चाहे जितने भी बड़े क्यों न हो जाएं लेकिन अपने बड़ों का सदैव आदर करना चाहिये। दोस्तों चंद दिनों की जिंदगी में हमें सब के साथ मिलजुलकर रहना चाहिए और कभी भी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिये। खाली बर्तन में आवाज ज्यादा होती है जबकि भरे बर्तन में आवाज बिल्कुल नहीं होती।